मुंबई, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में के.सी. महाविद्यालय एवं सेवाग्राम कलेक्टिव के संयुक्त तत्वावधान में ‘इज महात्मा गांधी पॉसिबल’ विषयक दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में निर्वासित तिब्बती सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री समधांग रिनपोेछे ने कहा कि ‘‘इस युग में महात्मा की संभावना पर संदेह क्यों है? आज पृथ्वी का भविष्य पूरी तरह से अनिश्चित है। ऐसे में सवाल यह होना चाहिए कि ‘‘गांधी संभव क्यों नहीं हैं?’’ हम देख सकते हैं कि गांधी की प्रतिमाएं हर जगह पाई जाती हैं, लेकिन यह भी सच है कि हमने उनके दर्शन और जीवन पद्धति को छोड़ दिया है। आज जरूरत है कि हम उन आदर्शों को स्वीकारें जो महात्मा गांधी ने स्थापित किए हैं। जिस सभ्यता और आधुनिकता के बीच हम रह रहे हैं; उसकी मांग है गांधीवादी विचारधारा। लेकिन मैं यहां विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि हमें यदि गांधीवादी सोच को अपनाना है, तो अपने जीवन में सत्य और अहिंसा को वापस लाना होगा।’’ बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ डॉ. आशीष नंदी ने कहा कि ‘‘महात्मा गांधी सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हर युग में संभव है। यह उनके विचार और विचार हैं जिन्होंने उन्हें महात्मा बनाया। हमें आज के समय में इसकी जरूरत है।’’ अपने बातों को परिभाषित करते हुए उन्होंने कंठपुरा तथा ‘गोरा’ उपन्यास का उल्लेख किया। उद्घाटन समारोह में एचएस (एन) सी बोर्ड के अध्यक्ष किशु मनसुखानी और निवर्तमान अध्यक्ष अनिल हरीश भी उपस्थित थे। इससे पूर्व महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. हेमलता बागला ने अपने स्वागत भाषण के दौरान कहा कि महात्मा गांधी ने कहा है ‘‘यदि आप शांति लाना चाहते हैं, तो बच्चों को शिक्षित करना जरूरी है और जरूरी नहीं कि यह शिक्षा पुस्तकों से आए।’’ यह संगोष्ठी इसी विषय को ध्यान में रखते हुए आयोजित की गई है। आज हम देख रहे हैं कि विशाल तकनीकी परिवर्तन, सामाजिक विघटन, आक्रामक राष्ट्रवाद और जलवायु परिवर्तन की जटिलताओं से पूरा विश्व जूझ रहा है। ऐसे में महात्मा गांधी के विचार प्रासंगिक हो उठते हैं। संगोष्ठी के दौरान अन्य सत्रों में संस्कृति, अर्थशास्त्र, लोकविज्ञान एवं राजनीति को केन्द्र में रखकर अलग-अलग सत्रों में चर्चा हुई। इन सत्रों में अशोक बाजपेयी, डॉ. गणेश देवी, मलिका साराभाई, डॉ. अपूर्वानंद, डॉ. सुदर्शन अय्यंगार, डॉ. विभूति पटेल, मोहन हिराबाई हिरालाल, प्रा. श्रीनिवास खांदेवाले, देवीदास तुळजापूरकर, डॉ. जेवियर राज, डॉ. मिलिंद वाटवे, डॉ. अनिल राजवंशी, डॉ. प्रदीप शर्मा, डॉ. रवींद्र, सुजल कुलकर्णी, डॉ. हेमलता बागला, प्रा. भिकू पारेख, शरदचंद्र बेहेर, रामदास भटकल, डॉ. एम.पी. मथाई एवं डॉ. अनिल चंद्रचूड़ ने अपने विचार रखे। संयोजक डॉ. श्याम पाखरे के आभार ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।